चाँद बावड़ी का इतिहास काफी रोचक और प्राचीन है।
यहाँ चाँद बावड़ी के इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी दी गई है:
चाँद बावड़ी का इतिहास
- निर्माण काल: चाँद बावड़ी का निर्माण 8वीं से 9वीं शताब्दी के बीच हुआ था।
- निर्माणकर्ता: इसे गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज, जिन्हें राजा चाँद के नाम से भी जाना जाता था, ने बनवाया था। इन्हीं के नाम पर इस बावड़ी का नाम ‘चाँद बावड़ी’ पड़ा। कुछ स्रोतों में निकुंभ वंश के राजा चंदा का उल्लेख भी है।
- उद्देश्य: बावड़ी का निर्माण मुख्य रूप से जल संरक्षण और शुष्क क्षेत्र में पानी की कमी को पूरा करने के लिए किया गया था। यह समुदाय के लिए एक सभा स्थल और अनुष्ठानों का केंद्र भी थी।
- स्थान: यह बावड़ी राजस्थान के दौसा जिले में आभानेरी गाँव में स्थित है। गाँव का प्राचीन नाम ‘आभा नगरी’ था, जिसका अर्थ है ‘चमक का शहर’।
- वास्तुकला: यह प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग और वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है, जिसमें जल प्रबंधन और सौंदर्य का बेहतरीन मिश्रण देखने को मिलता है।
चाँद बावड़ी की मुख्य विशेषताएँ
- गहराई और आकार: यह भारत की सबसे गहरी और बड़ी बावड़ियों में से एक है।
- यह लगभग 30-35 मीटर गहरी है।
- यह 13 मंजिला है।
- इसमें लगभग 3500 संकीर्ण और सममित सीढ़ियाँ हैं, जो भूल-भुलैया जैसी दिखती हैं।
- अन्य आकर्षण: बावड़ी के पास ही हर्षत माता का मंदिर स्थित है। बावड़ी की निचली मंजिलों में भगवान गणेश और महिषासुर मर्दिनी की भव्य मूर्तियाँ भी हैं।
- लोककथाएँ:
- स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, इस विशाल बावड़ी का निर्माण भूतों ने केवल एक ही रात में किया था।
- इसकी अत्यधिक गहराई और जटिल सीढ़ियों के कारण यह भी कहा जाता है कि यदि इसमें कोई वस्तु गिर जाए, तो उसे वापस निकालना बहुत मुश्किल होता था।
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